डिजिटल कैमरा
डिजिटल कैमरा (या संक्षेप में - डिजिकैम) एक ऐसा कैमरा है जो डिजिटल रूप में वीडियो या स्टिल फोटोग्राफ या दोनों लेता है और एकइलेक्ट्रॉनिक इमेज सेंसर के माध्यम से चित्रोंको रिकॉर्ड कर लेता है।
कई कॉम्पैक्ट डिजिटल स्टिल कैमरे, ध्वनिऔर मूविंग वीडियो के साथ-साथ स्टिलफोटोग्राफ को भी रिकॉर्ड कर सकते हैं।पश्चिमी बाजार में, डिजिटल कैमरों के 35 mm फ़िल्म काउंटरपार्ट की ज्यादा बिक्री होती है।[1]
डिजिटल कैमरे, वे सभी काम कर सकते हैं जो फ़िल्म कैमरे नहीं कर पाते हैं: रिकॉर्ड करने के तुरंत बाद स्क्रीन पर इमेजों को प्रदर्शित करना, एक छोटे-से मेमोरी उपकरण में हज़ारों चित्रों का भंडारण करना, ध्वनि के साथ वीडियो की रिकॉर्डिंग करना और संग्रहण स्थान को खाली करने के लिए चित्रों को मिटा देना. कुछ डिजिटल कैमरे तस्वीरों में कांट-छांट कर सकते हैं और चित्रों का प्रारंभिक संपादन भी कर सकते हैं। मूल रूप से वे फ़िल्म कैमरे की तरह ही संचालित होते हैं और आम तौर पर चित्र लेने वाले एक उपकरण पर प्रकाश को केंद्रित करने के लिए एक वेरिएबल डायाफ्राम वाले लेंस का प्रयोग होता है। ठीक फ़िल्म कैमरे की तरह इसमें भी इमेजर में प्रकाश की सही मात्रा की प्रविष्टि करने के लिए डायाफ्राम और एक शटर क्रियावली के संयोजन का प्रयोग किया जाता है; एकमात्र अंतर यही है कि इसमें प्रयुक्त चित्र लेने वाले उपकरण, रासायनिक होने के बजाय इलेक्ट्रॉनिक होता है।
PDA और मोबाइल फोन (कैमरा फोन) से लेकर वाहनों तक की श्रेणी के कई उपकरणों में डिजिटल कैमरों को समाहित किया जाता है।हबल स्पेस टेलीस्कोप और अन्य खगोलीयउपकरणों में आवश्यक रूप से विशेष डिजिटल कैमरों का प्रयोग होता है।
डिजिटल कैमरों के प्रकार
कॉम्पैक्ट डिजिटल कैमरा
कॉम्पैक्ट कैमरों को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि वे छोटे हों और वहनीय हों और ख़ास तौर पर कैज़ुअल और "स्नैपशॉट" प्रयोग के लिए उपयुक्त हों, इसलिए इन्हें पॉइंट-ऐंड-शूट कैमरा भी कहा जाता है। आम तौर पर 20 mm से भी कम मोटाई वाले सबसे छोटे कॉम्पैक्ट कैमरों को सबकॉम्पैक्ट या "अल्ट्रा-कॉम्पैक्ट" के रूप में वर्णित किया जाता है। कॉम्पैक्ट कैमरों को आम तौर पर इस तरह डिजाइन किया जाता है कि उनका प्रयोग करना सरल हो, उनसे उन्नत किस्म की सुविधाएं प्राप्त हो सके और उनके तस्वीरों की गुणवत्ता, कॉम्पैक्ट और सरल हो; आम तौर पर इसके चित्रों को केवल लॉसी कम्प्रेशन(JPEG) का प्रयोग करके ही संग्रहित किया जा सकता है। अधिकांश कॉम्पैक्ट कैमरों में अंतर्निर्मित फ्लैश होते हैं जिनकी शक्ति आम तौर पर कम होती है लेकिन पास की वस्तुओं के लिए पर्याप्त होती है। फोटो को फ्रेम करने के लिए लगभग हमेशा ही लाइव पूर्वावलोकन का प्रयोग किया जाता है। उनकी मोशन पिक्चरकी क्षमता सीमित हो सकती है। कॉम्पैक्ट कैमरों में प्रायः मैक्रो क्षमता होती है, लेकिन यदि उनमें ज़ूम क्षमता हो, तो उसकी सीमाब्रिज तथा DSLR कैमरों से कम होती है। आम तौर पर एक कंट्रास्ट-डिटेक्ट ऑटोफ़ोकससिस्टम, लेंस को केंद्रित करता है जिसके लिए वह मुख्य इमेजर में संहित लाइव पूर्वावलोकन से चित्रों के डेटा का प्रयोग करता है।
आम तौर पर, इन कैमरों के लेंसों में एक लगभग-स्थिर लीफ शटर होता है।
लागत को कम करने और आकार को छोटा करने के लिए, आम तौर पर इन कमरों में लगभग 6 mm विकर्ण वाले इमेज सेंसर का प्रयोग किया जाता है जो इसके कांट-छांट की क्षमता के लगभग 6 होने के कारण अनुकूलहोता है। इससे इसकी प्रदर्शन क्षमता कमज़ोर और कम-प्रकाशीय हो जाता है, क्षेत्र की गहराई अधिक हो जाती है, समीप से फ़ोकस करने की क्षमता भी आम तौर पर बढ़ जाती है और इसके संघटक, बड़े-बड़े सेंसरों का प्रयोग करने वाले कैमरों की अपेक्षा छोटे होते हैं।
ब्रिज कैमरा
मुख्य लेख : Bridge digital camera
ब्रिज या SLR-जैसे कैमरे, उच्चतर-स्तर वाले डिजिटल कैमरे होते हैं जो बनावट और कार्य-क्षमता की दृष्टि से DSLR कैमरों की तरह होते हैं और इनमें कुछ उन्नत सुविधाएं भी उपलब्ध होती हैं लेकिन कॉम्पैक्ट कैमरों की तरह इनमें भी एक नियत लेंस और एक छोटे सेंसर का प्रयोग होता है। कॉम्पैक्ट कैमरों की तरह, अधिकांश ब्रिज कैमरों में भी चित्रों को फ्रेम करने के लिए लाइव पूर्वावलोकन का प्रयोग किया जाता है। उसी तरह के कंट्रास्ट-डिटेक्ट क्रियावली का प्रयोग करके ऑटोफ़ोकस को प्राप्त किया जाता है लेकिन कई ब्रिज कैमरों में अधिक नियंत्रण प्राप्त करने के लिए एक मैनुअल फ़ोकस की सुविधा उपलब्ध होती है।
फ़ुजीफ़िल्म फाइनपिक्स S9000 [Fujifilm FinePix S9000].
इसका भौतिक आकार बड़ा लेकिन सेंसर छोटा होने के कारण, इनमें से कई कैमरों में बहुत अधिक क्षमता वाले विशेष लेंस होते हैं और साथ में ज़ूम करने की क्षमता भी अधिक होती है और इसका छिद्र भी बहुत नुकीला होता है जो आंशिक रूप से लेंस को परिवर्तित करने की अकर्मता की भरपाई करने में सहायक होता है। एक विशिष्ट उदाहरण है - [[निकोन कूलपिक्स P90 [Nikon Coolpix P90]]] पर 24× ज़ूम निकोर ED 4.6-110.4mm f2.8-5.0 [24× Zoom Nikkor ED 4.6-110.4mm f2.8-5.0] जो 35mm फॉर्मेट टर्म्स में एक 26-624mm ज़ूम लेंस होता है। ऐसे महत्वाकांक्षी विनिर्देशों वाले एक लेंस मेंअसामान्यताओं को कम करने के लिए, इनकी संरचना काफी जटिल होती है जिसके लिए एकाधिक ऐस्फरिक तत्वों और प्रायः अनियमित-फैलाव वाले ग्लास का प्रयोग किया जाता है। इस उदाहरण में पिनकुशन के साथ-साथ बैरल विरूपण को भी कैमरे के फर्मवेयर में ठीक किया जा सकता है। उनके छोटे-छोटे सेंसरों की विघटित संवेदनशीलता की भरपाई करने के लिए, इन कैमरों में प्रायः हमेशा ही विशेष प्रकार की एक चित्र स्थिरीकरण प्रणाली समाहित होती है जो लम्बे समय से शिथिल पड़े प्रदर्शनमूलक अवयवों को सक्षम बना देती है।
इन कैमरों को कभी-कभी भूल से डिजिटल एसएलआर कैमरा मान लिया जाता है और इनका विपणन भी इसी रूप में कर दिया जाता है क्योंकि ये दोनों प्रकार के कैमरे देखने में एक ही तरह के लगते हैं। ब्रिज कैमरों में DSLR की तरह दूसरी तरफ से देखने की व्यवस्था का अभाव होता है जिसमें अब तक नियत (गैर-अंतरपरिवर्तनीय) लेंस ही लगाए जाते रहे हैं (यद्यपि कुछ मामलों में एक्सेसरी वाइड-ऐंगल या टेलीफोटो कंवर्टर्स को लेंस के साथ जोड़ा जा सकता है) जो आम तौर पर ध्वनि के साथ फ़िल्में ले सकता है और दृश्य को या तो लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले या इलेक्ट्रॉनिक व्यूफ़ाइंडर की सहायता से कम्पोज़ किया जाता है। एक ट्रू डिजिटल SLR की तुलना में इनकी संचालन क्षमता आम तौर पर कम होती है लेकिन DSLR की तुलना में अधिक कॉम्पैक्ट और अधिक हल्के होने के बावजूद इनमें उच्च कोटि की गुणवत्ता वाले (पर्याप्त प्रकाश की सहायता से) चित्र लेने की क्षमता होती है। निम्न और मध्य श्रेणी के DSLR की तुलना में इस तरह के उच्च-स्तरीय मॉडलों का रिज़ोलुशन भी तुलनात्मक होता है। इनमें से अधिकांश कैमरे, चित्रों को एक रॉ इमेज फॉर्मेटया प्रोसेस्ड और JPEG कंप्रेस्ड या दोनों रूपों में संग्रहित कर सकते हैं। इनमें से अधिकांश कैमरों में DSLR की तरह अंतर्निर्मित फ्लैश उपलब्ध होता है।
डिजिटल सिंगल लेंस रिफ्लेक्स कैमरा
ओलिंपस E-30 DSLR [Olympus E-30 DSLR] का कटएवे
मुख्य लेख : Digital single-lens reflex camera
डिजिटल सिंगल-लेंस रिफ्लेक्स कैमरा (DSLR), एक प्रकार का डिजिटल कैमरा ही है जो फ़िल्म सिंगल-लेंस रिफ्लेक्स कैमरा (SLR) पर आधारित होता है। उनका नाम उनकी अद्वितीय प्रदर्शन प्रणाली से लिया गया है जिसमें एक ऐसा दर्पण होता है जो प्रकाश को एक अलग ऑप्टिकल व्यूफ़ाइंडर के माध्यम से लेंस से प्रकाश को परावर्तित करता है। चित्र को कैप्चर करने के उद्देश्य से दर्पण अपने मार्ग से हट जाता है जिससे प्रकाश के इमेजर पर पड़ने में आसानी होती है। चूंकि फ्रेम करने के दौरान इमेजर तक प्रकाश नहीं पहुंच पाता है इसलिए दर्पण बॉक्स में विशिष्ट सेंसरों का प्रयोग करके ऑटोफ़ोकस को कार्यान्वित किया जाता है। 21वीं सदी के अधिकांश DSLR कैमरों में भी एक "लाइव व्यू" मोड होता है जो चयन करने पर कॉम्पैक्ट कैमरों की लाइव पूर्वावलोकन प्रणाली को उत्तेजित कर डेटा है।
अन्य प्रकार के कैमरों की अपेक्षा इन कैमरों के सेंसरों का आकार बहुत बड़ा होता है जिनका विकर्ण आम तौर पर 18 mm से 36 mm (क्रॉप फैक्टर - 2, 1.6 या 1) तक होता है। यह उन्हें उत्कृष्ट निम्न-प्रकाश प्रदर्शन, एक प्रदत्त छिद्र में कम गहराई वाला क्षेत्र और एक बड़ा आकार प्रदान करता है।
वे अंतरपरिवर्तनीय लेंसों का प्रयोग करते हैं; प्रत्येक प्रमुख DSLR निर्माता विभिन्न प्रकार के लेंसों की भी बिक्री करता है जिन्हें ख़ास तौर पर उनके कैमरों में प्रयुक्त करने के विचार से निर्मित किया जाता है। इससे उपयोगकर्ता को अनुप्रयोग: वाइड-ऐंगल, टेलीफोटो, निम्न-प्रकाश इत्यादि के लिए डिजाइन किए गए सबसे उपयुक्त लेंस का चयन करने में आसानी होती है। इसलिए प्रत्येक लेंस को दर्पण के पीछे अपने ही शटर की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि DSLR में इमेजर के सामने एक फोकल-प्लेन शटर का प्रयोग किया जाता है।
प्रदर्शन के समय दर्पण के अपने मार्ग से हटने पर एक विशेष प्रकार की कटकटाने की आवाज़ सुनाई देती है।
इलेक्ट्रॉनिक व्यूफ़ाइंडर, अंतरपरिवर्तनीय लेंस कैमरा
मुख्य लेख : Micro Four Thirds
2008 के अंतिम दौर में, एक नई किस्म के कैमरे का आगमन हुआ जिसमें DSLR कैमरों के अंतरपरिवर्तनीय लेंसों और बड़े-बड़े सेंसरों को, एक इलेक्ट्रॉनिक व्यूफ़ाइंडर के माध्यम से या पिछले LCD पर, कॉम्पैक्ट कैमरों की लाइव पूर्वावलोकन प्रणाली के साथ जोड़ा गया था। दर्पण बॉक्स को हटा दिए जाने के कारण ये DSLR कैमरों की तुलना में अधिक सरल और अधिक कॉम्पैक्ट होते हैं और ये आम तौर पर या तो DSLR कैमरों या फिर कॉम्पैक्ट कैमरों के संचालन और कार्य-क्षमता को उत्तेजित कर देता है। 2009 तक इस तरह की एकमात्र प्रणाली, माइक्रो फोर थर्ड्स [Micro Four Thirds] है जिसके घटकों को फोर थर्ड्स[Four Thirds] की DSLR प्रणाली से लिया गया है।
डिजिटल रेंजफाइंडर
मुख्य लेख : Rangefinder camera#Digital rangefinder
रेंजफाइंडर, एक उपयोगकर्ता-संचालित ऑप्टिकल प्रणाली है जिसका प्रयोग वस्तुओं की दूरी मापने के लिए किया जाता है जो कभी फ़िल्म कैमरों में प्रयुक्त होता था। अधिकांश डिजिटल कैमरे, ध्वनिक या इलेक्ट्रॉनिक तकनीक़ का प्रयोग करके अपने आप वस्तु की दूरी माप लेते हैं लेकिन यह कहना उचित नहीं होगा कि उनमें रेंजफाइंडर है। रेंजफाइंडरसंज्ञा का मतलब कभी-कभी रेंजफाइंडर कैमरा भी होता है, अर्थात्, वह फ़िल्म कैमरा जो रेंजफाइंडर से लैस होता है जो उन SLR या साधारण कैमरों से अलग होता है जिसमें दूरी मापने की क्षमता नहीं होती है।
लाइन-स्कैन कैमरे की प्रणालीसंपादित करें
लाइन-स्कैन कैमरा, एक ऐसा कैमरा उपकरण है जिसमें एक लाइन-स्कैन इमेज सेंसर चिप और एक फ़ोकसिंग क्रियावली होती है। इन कैमरों का प्रयोग प्रायः केवल औद्योगिक स्थानों में चलायमान वस्तु के निरंतर प्रवाह के चित्र को लेने के लिए किया जाता है। वीडियो कैमरों के विपरीत, लाइन-स्कैन कैमरों में उनके मेट्रिक्स के बजाय पिक्सेल सेंसरों की एक सारिणी का प्रयोग होता है। लाइन-स्कैन कैमरे के डेटा में एक फ्रिक्वेंसी होती है जिसके अंतर्गत कैमरा, किसी लाइन को स्कैन करने, इंतज़ार करने और दोहराने का कार्य करता है। लाइन-स्कैन कैमरे के डेटा को आम तौर पर एक कंप्यूटर द्वारा प्रोसेस किया जाता है ताकि एक-आयामी लाइन डेटा का संग्रहण और द्वि-आयामी चित्र का निर्माण किया जा सके. उसके बाद औद्योगिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संग्रहित द्वि-आयामी चित्रों के डेटा को इमेज-प्रोसेसिंग प्रक्रिया के द्वारा प्रोसेस किया जाता है।
लाइन-स्कैन प्रौद्योगिकी में डेटा को अति-तीव्र गति से और बहुत ज्यादा इमेज रिज़ोलुशंस पर कैप्चर करने की क्षमता होती है। आम तौर पर इन परिस्थितियों में, परिणामी संग्रहित इमेज डेटा तुरंत कुछ-एक सेकंड में 100 MB की सीमा को पार कर जाता है। इसलिए लाइन-स्कैन-कैमरा-आधारित एकीकृत प्रणालियों को आम तौर पर कैमरे के उत्पाद को कारगर बनाने के लिए डिजाइन किया जाता है ताकि प्रणाली के उद्देश्य की पूर्ति हो सके और इसके लिए सस्ती कंप्यूटर प्रौद्योगिकी का भी प्रयोग किया जाता है।
पार्सल संचालन उद्योग के लिए निर्मित लाइन-स्कैन कैमरें, कोण और आकार की परवाह किए बिना, फ़ोकस में आए किसी आयताकार पार्सल की छः भुजाओं को स्कैन करने के लिए अनुकूली फ़ोकसिंग क्रियावली को एकीकृत कर सकते हैं। परिणामी 2-D कैप्चर वाले चित्रों में पते की जानकारी और कोई ऐसा प्रतिरूप शामिल हो सकता है जिसे इमेज प्रोसेसिंग विधियों के माध्यम से प्रोसेस किया जा सकता है लेकिन यह 1D और 2D बारकोडों तक सीमित नहीं होता है। चित्रों के 2-D होने से वेमानव-पठनीय भी होते हैं और उन्हें कंप्यूटर के स्क्रीन पर भी देखा जा सकता है। उन्नत एकीकृत प्रणालियों में वीडियो कोडिंग औरऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन (OCR) शामिल होते हैं।
एकीकरण
कई उपकरणों में अंतर-निर्मित या अंतर-एकीकृत डिजिटल कैमरें होते हैं। उदाहरण के लिए, मोबाइल फोनों में प्रायः डिजिटल कैमरें शामिल होते हैं जिन्हें कभी-कभी कैमरा फोनभी कहा जाता है। अन्य छोटे-छोटे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे - PDA, लैपटॉप और [[ब्लैकबेरी [BlackBerry]]] के उपकरणों में प्रायः कुछ डिजिटल कैमकोर्डरों की तरह एक अनिवार्य डिजिटल कैमरा होता है।
सीमित भंडारण क्षमता और चित्रों की गुणवत्ता के बजाय आम तौर पर सहूलियत पर ज्यादा ज़ोर देने के कारण, ऐसे बहुसंख्यक एकीकृत या अभिसरित उपकरण, चित्रों को लॉसी परन्तु कॉम्पैक्ट JPEG फाइल फॉर्मेट में संग्रहित करते हैं।
डिजिटल कैमरों से लैस मोबाइल फोनों की शुरूआत, J-फोन [J-Phone] द्वारा 2001 में जापान में की गई। 2003 में स्वचालित डिजिटल कैमरों की अपेक्षा कैमरा फोनों की ज्यादा बिक्री हुई और 2006 में भी सभी फ़िल्म-आधारित कैमरों और डिजिटल कैमरों की संयुक्त बिक्री से ज्यादा बिक्री इन कैमरों की हुई. केवल पांच सालों में इन कैमरा फोनों के उपकरणों की बिक्री एक बिलियन तक पहुंच गई और 2007 तक सभी मोबाइल फोनों के आधे से भी अधिक का स्थापित आधार, कैमरा फोन थे।
तकनीक़ी विनिर्देशों जैसे - रिज़ोलुशन, ऑप्टिकल गुणवत्ता और उपकरणों के उपयोग की क्षमता की दृष्टि से एकीकृत कैमरों का स्थान डिजिटल कैमरों की श्रेणी में सबसे निचले छोर पर है। हालांकि, द्रुत विकास के साथ-साथ, मेनस्ट्रीम कॉम्पैक्ट डिजिटल कैमरों और कैमरा फोन के बीच का अंतर अब धीरे-धीरे कम हो रहा है और एक ही पीढ़ी के उच्च-स्तरीय कैमरा फोनों और निम्न-स्तरीय स्वचालित डिजिटल कैमरों के बीच प्रतिस्पर्धा जारी है।
फ़िल्म कैमरों का डिजिटल में रूपांतरण
डिजिटल सिंगल-लेंस रिफ्लेक्स कैमरा
जब डिजिटल कैमरे आम हो गए, तब कईफोटोग्राफरों का एक ही सवाल था कि क्या उनके फ़िल्म कैमरों को डिजिटल में रूपांतरित किया जा सकता है। इसका जवाब था - हां और नहीं. अधिकांश 35 mm फ़िल्म कैमरों के लिए जवाब है - नहीं, क्योंकि इस पर फिर से काम करने की आवश्यकता होगी और इसकी लागत भी बहुत ज्यादा होगी, ख़ास तौर पर लेंसों के साथ-साथ कैमरों को विकसित करने में बहुत ज्यादा काम करना होगा और इसकी लागत भी बहुत ज्यादा होगी. कैमरों को डिजिटल में रूपांतरित करने के अधिकांश मामलों में, इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए पर्याप्त जगह बनाने और लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले के माध्यम से पूर्वावलोकन करने के लिए, कैमरे के पीछे के भाग को हटाकर इसकी जगह एक रीतिगत निर्मित डिजिटल यूनिट के प्रतिस्थापन की आवश्यकता होगी.
35 mm फ़िल्म कैमरों से कई आरंभिक व्यवहारिक SLR कैमरों जैसे - NC2000 और कोडेक DCS [Kodak DCS] श्रृंखला को विकसित किया गया। हालांकि, उस समय की प्रौद्योगिकी के आधार पर इन कैमरों के पीछे वाले भाग, डिजिटल "बैक्स" होने के बजाय लगभग कैमरे वाले हिस्से से भी बड़े और भारी-भरकम यूनिट से लैस होते थे। इन कैमरों का निर्माण फैक्ट्री में हुआ था लेकिन फिर भी इनके विपणन के बाद इनके रूपांतरण की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।
[[निकोन E2 [Nikon E2]]], इसका एक उल्लेखनीय अपवाद है और इस कैमरे के बाद [[निकोन E3 [Nikon E3]]] का निर्माण किया गया जिसमें 35mm फॉर्मेट को एक 2/3 CCD-सेंसर में रूपांतरित करने के लिए अतिरिक्त ऑप्टिक्स का प्रयोग किया गया।
कुछ 35 mm कैमरों के पीछे उनके निर्माता द्वारा निर्मित डिजिटल कैमरा लगे होते हैं जिसका एक उल्लेखनीय उदाहरण है - लीका [Leica]. मध्यम फॉर्मेट और बड़े फॉर्मेट वाले कैमरों (जिनमें 35 mm से भी ज्यादा फ़िल्म स्टॉक का प्रयोग होता है) में एक लो यूनिट प्रोडक्शन होता है और इसके विशिष्ट डिजिटल बैक्स की लागत 10,000 डॉलर से भी अधिक होती है। ये कैमरें बहुत अधिक मॉड्यूलर होते हैं और अलग-अलग जरूरतों को पूरा करने के लिए इनमें हैंडग्रिप्स, फ़िल्म बैक्स, विंडर्स और अलग से लेंस भी उपलब्ध होते हैं।
इनके पीछे के हिस्से में बड़े-बड़े सेंसर लगे होने के कारण चित्र का आकार भी बहुत बड़ा होता है। 2006 के आरंभ का सबसे बड़ा इमेजबैक, फेज़ वन [Phase One] का P45 39 MP है जो 224.6 MB तक के आकार का केवल एक TIFF चित्र का निर्माण करता है। मध्य फॉर्मेट वाले डिजिटल कैमरें, अपने छोटे-छोटे DSLR काउंटरपार्ट्स के मुकाबले स्टूडियो और पोर्ट्रेट फोटोग्राफी की तरफ अधिक क्रियाशील हैं; खास तौर पर [[ISO स्पीड [ISO speed]]] में DSLR कैमरों के 6400 के मुकाबले अधिक-से-अधिक 400 की क्षमता होती है।
इतिहास
प्रारंभिक विकास
स्कैनरों पर चित्रों के अंकीकरण की अवधारणा और वीडियो संकेतों के अंकीकरण की अवधारणा ने ही असतत सेंसर तत्वों की एक सारणी से संकेतों को अंकीकृत करके स्थिर चित्र बनाने की अवधारणा को जन्म दिया। 1961 के स्पेस कांफ्रेंस में जेट प्रोपल्सन लेबोरेटरी के यूजीन एफ. लैली ने एक अंतरिक्षयान की ऊंचाई को मापने के लिए एकमोज़ेक फोटोसेंसर को एक सितारे के रूप में प्रयुक्त करने की बात कही.[2] NY स्थित फिलिप्स लैब्स. में एडवर्ड स्टप, पीटर कैथऔर ज्सोल्ट स्ज़िलाग्यी ने 6 सितंबर 1968 को "ऑल सॉलिड स्टेट रेडिएशन इमेजर्स" पर एक पेटेंट दायर किया और एक फ्लैट स्क्रीन का निर्माण किया जिसका मुख्य लक्ष्य था - मेट्रिक्स पर ऑप्टिकल इमेज को प्राप्त करना और इसका भंडारण करना, जो एक संधारित्र से जुड़े फोटोडायोड्स की एक सारणी से बना होता था जिससे पंक्तियों और स्तंभों में जुड़े दो टर्मिनल उपकरणों की एक सारिणी का निर्माण किया जा सकता था। उनके US पेटेंट को 10 नवम्बर 1970 को स्वीकृति मिली.[3] टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स [Texas Instruments] के इंजीनियर विलिस ऐडकॉक ने एक फ़िल्म-रहित कैमरे को डिजाइन किया जो डिजिटल नहीं था और 1972 में एक पेटेंट के लिए इसका अनुप्रयोग किया गया था लेकिन यह ज्ञात नहीं है कि यह कभी बना भी था।[4] सबसे पहले 1975 में ईस्टममैन कोडेक [Eastman Kodak] के स्टीवन सैसन नामक एक इंजीनियर ने एक डिजिटल कैमरे का निर्माण करने की कोशिश की। [5] इसमें 1973 में फेयरचाइल्ड सेमीकंडक्टर [Fairchild Semiconductor] द्वारा विकसित तत्कालीन-नई ठोस-अवस्था वाले CCD इमेज सेंसर का प्रयोग किया गया।[6] इस कैमरे का वजन 8 पाउंड (3.6 kg) था, इसमें एक कैसेट टेप में काले और सफ़ेद चित्रों को रिकॉर्ड किया गया, इसका रिज़ोलुशन 0.01 मेगापिक्सेल (10,000 पिक्सल) था और दिसंबर 1975 में अपना पहला चित्र लेने में इसे 23 सेकंड लगे. प्रोटोटाइप कैमरा, एक तकनीक़ी प्रयास था जिसके उत्पादन का इरादा नहीं था।
एनालॉग इलेक्ट्रॉनिक कैमरे
हैंडहेल्ड इलेक्ट्रॉनिक कैमरे, एक हैंडहेल्ड फ़िल्म कैमरे की तरह वहनीय और प्रयुक्त होने वाले एक उपकरण के रूप में, की शुरूआत 1981 में [[सोनी माविका [Sony Mavica]]] (मैग्नेटिक वीडियो कैमरा) के प्रदर्शन के साथ हुई. इसमें भ्रमित होने वाली कोई बात नहीं है क्योंकि सोनी [Sony] द्वारा प्रस्तुत इसके बाद के कैमरों के नाम के साथ भी माविका नाम जुड़ा था। यह एक एनालॉग कैमरा था जिसमें इसने लगातार पिक्सेल संकेतों की रिकॉर्डिंग की जैसा कि वीडियोटेप वाली मशीनें करती थी जिसके लिए इसे उन संकेतों को असतत स्तरों में रूपांतरित करने की आवश्यकता नहीं थी; इसने टेलीविज़न-जैसे संकेतों को 2 × 2 इंच वाले एक "वीडियो फ्लॉपी" में रिकॉर्ड किया।[7] संक्षेप में यदि कहा जाय तो यह एक वीडियो मूवी कैमरा था जिसने एकल फ्रेमों, फील्ड मोड में 50 प्रति डिस्क और फ्रेम मोड में 25 प्रति डिस्क की रिकॉर्डिंग की। इसके चित्रों की गुणवत्ता को तत्कालीन-वर्तमान टेलीविज़नों के चित्रों की गुणवत्ता के समान माना गया।
ये एनालॉग इलेक्ट्रॉनिक कैमरे, कैनन RC-701 [Canon RC-701] के साथ 1986 तक बाज़ार में पहुंचने में कामयाब नहीं हुए. कैनन [Canon] ने 1984 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में इस मॉडल के एक प्रोटोटाइप का प्रदर्शन किया और योमिउरी शिम्बुन नामक एक जापानी समाचार-पत्र में इन चित्रों को मुद्रित किया। संयुक्त राज्य अमेरिका में, सबसे पहले USA टुडे के वर्ल्ड सिरीज़ बेसबॉल के कवरेज में वास्तविक विस्तृत-सूचना के प्रकाशन के लिए इन कैमरों का प्रयोग किया गया। इन एनालॉग कैमरों को व्यापक रूप से न अपनाने के पीछे कई कारण थे; लागत ($20,000 से ऊपर), फ़िल्म कैमरों की तुलना में ख़राब चित्रों की गुणवत्ता और गुणवत्ता वाले सस्ते प्रिंटरों का अभाव. वास्तव में चित्र लेने और उसे मुद्रित करने के लिए फ्रेम ग्रैबर जैसे उपकरण की उपस्थिति आवश्यक थी जो औसत उपभोक्ता की पहुंच के बाहर था। "वीडियो फ्लॉपी" डिस्कों में बाद में कई रीडर उपकरणों को शामिल कर लिया गया ताकि इन्हें स्क्रीन पर देखा जा सके लेकिन इन्हें कभी एक कंप्यूटर ड्राइव की तरह मानकीकृत नहीं किया गया।
प्रारंभिक अनुकूलकों को न्यूज़ मीडिया में प्रयुक्त करने के लिए निर्मित किया गया जिसके अंतर्गत लागत को टेलीफोन लाइनों द्वारा चित्रों को भेजने की उपयोगिता और क्षमता द्वारा नकार दिया गया। ख़राब चित्रों की गुणवत्ता की भरपाई, समाचार-पत्र की ग्राफिक्स के निम्न-रिज़ोलुशन द्वारा की गई। किसी उपग्रह की सहायता लिए बगैर चित्रों को भेजने की यह क्षमता, 1989 के टियाननमेन स्क्वायर विरोध प्रदर्शन और 1991 में प्रथमखाड़ी युद्ध के दौरान काफी उपयोगी साबित हुई.
US सरकारी एजेंसियों ने भी स्टिल वीडियो की इस अवधारणा में गहरी दिलचस्पी दिखाई, खास तौर पर US नौसेना ने, जो इसका प्रयोग एक विशेष एयर-टु-सी निगरानी प्रणाली के रूप में करना चाहती थी।
सबसे पहला एनालॉग कैमरा, कैनन RC-250 ज़ैपशॉट [Canon RC-250 Xapshot] हो सकता है जो 1988 में विपणन के माध्यम से उपभोक्ताओं तक पहुंचा। उस वर्ष निकोन QV-1000C [Nikon QV-1000C] नामक एक उल्लेखनीय एनालॉग कैमरे का उत्पादन हुआ जिसे एक प्रेस कैमरे के रूप में डिजाइन किया गया था और जिसे साधारण उपयोगकर्ताओं को बेचने के लिए प्रस्तुत नहीं किया गया जिसकी केवल कुछ-एक सौ यूनिटों की बिक्री हुई. इसने ग्रेस्केल में चित्रों की रिकॉर्डिंग की और अख़बार-प्रिंट में इसकी गुणवत्ता, फ़िल्म कैमरों के समान थी। दिखने में यह बिलकुल एक आधुनिक डिजिटल सिंगल-लेंस रिफ्लेक्स कैमरे की तरह लगता था। इसके चित्रों को वीडियो फ्लॉपी डिस्कों में संग्रहित किया जाता था।
ट्रू डिजिटल कैमरों का आगमन
निकोन 1999 की डी 1 डिजिटल कैमरा
एक कंप्यूटरीकृत फाइल के रूप में चित्रों की रिकॉर्डिंग करने वाला सबसे पहला ट्रू डिजिटल कैमरा संभवतः 1988 का फ़ुजी DS-1P [Fuji DS-1P] था जिसने 16 MB वाले एक आतंरिक मेमोरी में इमेजों की रिकॉर्डिंग की और इस मेमोरी में डेटा को रखने के लिए एक बैटरी का प्रयोग किया गया। इस कैमरे को संयुक्त राज्य अमेरिका के बाज़ार में कभी नहीं लाया गया और इसके जापान में भेजे जाने की भी पुष्टि नहीं हुई है।
व्यावसायिक तौर पर उपलब्ध सबसे पहला डिजिटल कैमरा, 1990 का डाइकैम मॉडल 1 [Dycam Model 1] था; लॉजिटेक फोटोमैन [Logitech Fotoman] के रूप में भी इसकी बिक्री हुई. इसमें एक CCD इमेज सेंसर का प्रयोग किया जाता था, तस्वीरों को डिजिटल रूप में संग्रहित किया जाता था और डाउनलोड करने के लिए इसे सीधे एक कंप्यूटर से जोड़ दिया जाता था।[8][9][10]
1991 में, कोडेक [Kodak] ने कोडेक DCS-100[Kodak DCS-100] को बाज़ार में लाया जो पेशेवर कोडेक DCS SLR [Kodak DCS SLR ] कैमरों की एक लम्बी श्रेणी का आरंभ था जो आंशिक रूप से फ़िल्म कैमरों, प्रायः निकोन [Nikon] कैमरों पर आधारित था। इसमें 1.3 मेगापिक्सेल वाले सेंसर का प्रयोग किया गया और इसकी कीमत 13,000 डॉलर थी।
1988 में प्रथम JPEG और MPEG स्टैंडर्ड फॉर्मेट के निर्माण की वजह से डिजिटल फॉर्मेट की रचना संभव हुई जिससे चित्र और वीडियो फाइलों को संग्रहित करने के लिए इन्हें कम्प्रेस करने में सफलता मिली. पीछे की तरफ एक लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले वाले सबसे पहले उपभोक्ता कैमरे का आगमन 1995 में केसियोQV-10 [Casio QV-10] के रूप में हुआ औरकॉम्पैक्टफ्लैश [CompactFlash] का प्रयोग करने वाले सबसे पहले कैमरे का आगमन 1996 में कोडेक DC-25 [Kodak DC-25] के रूप में हुआ।
उपभोक्ता डिजिटल कैमरों के लिए बाज़ार, मूल रूप से उपयोगिता के लिए निर्मित निम्न-रिज़ोलुशन वाले (या तो एनालॉग या डिजिटल) कैमरें थे। 1997 में उपभोक्ताओं के लिए सबसे पहले मेगापिक्सेल कैमरों का विपणन किया गया। वीडियो क्लिपों की रिकॉर्डिंग की क्षमता वाले सबसे पहले कैमरे का आगमन 1995 में संभवतः रिकोह RDC-1[Ricoh RDC-1] के रूप में हुआ।
1999 में निकोन D1 [Nikon D1] नामक एक 2.74 मेगापिक्सेल कैमरे का आगमन हुआ जो एक प्रमुख निर्माता द्वारा पूरी तरह विकसित सबसे पहला डिजिटल SLR था और शुरू में इसकी लागत 6,000 डॉलर से कम थी जो पेशेवर फोटोग्राफरों और उच्च-स्तरीय उपभोक्ताओं के लिए सस्ता था। इस कैमरे में निकोन F-माउंट लेंसों का भी प्रयोग किया गया था जिसका मतलब था कि फ़िल्म फोटोग्राफर, इसी तरह के कई लेंसों का प्रयोग कर सकते थे जो उनके पास पहले से ही थी।
इमेज रिज़ोलुशन
एक डिजिटल कैमरे के रिज़ोलुशन को प्रायःकैमरे के सेंसर (ख़ास तौर पर एक CCD याCMOS सेंसर चिप) द्वारा सीमाबद्ध किया जाता है जो पारंपरिक फोटोग्राफी में फ़िल्म के काम का स्थान-परिवर्तन करके प्रकाश को असतत संकेतों में बदल देता है। सेंसर, लाखों "बकेट" से मिलकर बना होता है जो जरूरी तौर पर फोटॉन की संख्या को गिनने का काम करता है जो सेंसर को प्रभावित करता है। इसका मतलब यह है कि सेंसर के निर्दिष्ट बिंदु पर का चित्र जितना ज्यादा चमकीला होता है, उसका मान उतना ही अधिक होता है जो उसपिक्सेल के लिए प्रस्तुत होता है। सेंसर के भौतिक संरचना के आधार पर, एक रंग फ़िल्टर सारणी का प्रयोग किया जा सकता है जिसके लिए एक डेमोसाइसिंग/अंतर्वेशन कलनविधि की आवश्यकता होती है। चित्र के परिणामी पिक्सेलों की संख्या, इसके "पिक्सेल गणना" का निर्धारण करती है। उदाहरण के लिए, एक 640x480 चित्र में 307,200 पिक्सेल या लगभग 307 किलोपिक्सेल होगा; एक 3872x2592 चित्र में 10,036,224 पिक्सेल या लगभग 10 मेगापिक्सेल होंगे.
केवल पिक्सेल गणना को आम तौर पर किसी कैमरे के रिज़ोलुशन का संकेत माना जाता है लेकिन यह एक गलत धारणा है। ऐसे कई कारक हैं जो सेंसर के रिज़ोलुशन को प्रभावित करते हैं। इनमें से कुछ कारकों में शामिल हैं - सेंसर का आकार, लेंस की गुणवत्ता और पिक्सेल का गठन (उदाहरण के तौर पर, बेयर फ़िल्टर मोज़ेक रहित एक मोनोक्रोम कैमरे में एक विशिष्ट कलर कैमरे की तुलना में अधिक रिज़ोलुशन होता है). अत्यधिक पिक्सेल मौजूद होने के कारण कई डिजिटल कॉम्पैक्ट कैमरों की आलोचना की गई है। सेंसर, इतने छोटे हो सकते हैं कि उनके 'बकेट', आसानी से उन्हें परिपूर्ण कर सकते हैं; बदले में, सेंसर का रिज़ोलुशन अपेक्षाकृत बड़ा हो सकता है जो कैमरे के लेंस से शायद ही प्राप्त हो।
By-Wikipedia
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