Sunday, December 11, 2016

रेडियो का इतिहास,भाषा शैली, प्रकृति और प्रकार

24 दिसंबर 1906 की शाम कनाडाई वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन ने जब अपना वॉयलिन बजाया और अटलांटिक महासागर में तैर रहे तमाम जहाजों के रेडियोऑपरेटरों ने उस संगीत को अपने रेडियो सेट पर सुना, वह दुनिया में रेडियो प्रसारण की शुरुआत थी।
इससे पहले जे सी बोस ने भारत में तथा मार्कोनी ने सन 1900 में इंग्लैंड से अमरीकाबेतार संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियो संदेश भेजने की शुरुआत कर दी थी, पर एक से अधिक व्यक्तियों को एकसाथ संदेश भेजने या ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत 1906 में फेसेंडेन के साथ हुई। ली द फोरेस्ट और चार्ल्स हेरॉल्ड जैसे लोगों ने इसके बाद रेडियो प्रसारण के प्रयोग करने शुरु किए। तब तक रेडियो का प्रयोग सिर्फ नौसेना तक ही सीमित था। 1917 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद किसी भी गैर फौज़ी के लिये रेडियो का प्रयोग निषिद्ध कर दिया गया।
पहला रेडियो स्टेशन
1918 में ली द फोरेस्ट ने न्यू यॉर्क के हाईब्रिज इलाके में दुनिया का पहला रेडियो स्टेशन शुरु किया। पर कुछ दिनों बाद ही पुलिस को ख़बर लग गई और रेडियो स्टेशन बंद करा दिया गया।

एक साल बाद ली द फोरेस्ट ने 1919 में सैन फ्रैंसिस्को में एक और रेडियो स्टेशन शुरु कर दिया।
नवंबर 1920 में नौसेना के रेडियो विभाग में काम कर चुके फ्रैंक कॉनार्ड को दुनिया में पहली बार क़ानूनी तौर पर रेडियो स्टेशन शुरु करने की अनुमति मिली।
कुछ ही सालों में देखते ही देखते दुनिया भर में सैंकड़ों रेडियो स्टेशनों ने काम करना शुरु कर दिया।
रेडियो में विज्ञापन की शुरुआत 1923 में हुई। इसके बाद ब्रिटेन में बीबीसीऔर अमरीका में सीबीएस और एनबीसी जैसे सरकारी रेडियो स्टेशनों की शुरुआत हुई।
भारत और रेडियो
1927 तक भारत में भी ढेरों रेडियो क्लबों की स्थापना हो चुकी थी। 1936 में भारत में सरकारी ‘इम्पेरियल रेडियो ऑफ इंडिया’ की शुरुआत हुई जो आज़ादी के बाद ऑल इंडिया रेडियो या आकाशवाणी बन गया।
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत होने पर भारत में भी रेडियो के सारे लाइसेंस रद्द कर दिए गए और ट्रांसमीटरों को सरकार के पास जमा करने के आदेश दे दिए गए।
नरीमन प्रिंटर उन दिनों बॉम्बे टेक्निकल इंस्टीट्यूट बायकुला के प्रिंसिपल थे। उन्होंने रेडियो इंजीनियरिंग की शिक्षा पाई थी। लाइसेंस रद्द होने की ख़बर सुनते ही उन्होंने अपने रेडियो ट्रांसमीटर को खोल दिया और उसके पुर्जे अलग अलग जगह पर छुपा दिए।
इस बीच गांधी जी ने अंग्रेज़ों भारत छोडो का नारा दिया। गांधी जी समेत तमाम नेता 9 अगस्त 1942 को गिरफ़्तार कर लिए गए और प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई।
कांग्रेस के कुछ नेताओं के अनुरोध पर नरीमन प्रिंटर ने अपने ट्रांसमीटर के पुर्जे फिर से एकजुट किया। माइक जैसे कुछ सामान की कमी थी जो शिकागो रेडियो के मालिक नानक मोटवानी की दुकान से मिल गई और मुंबई के चौपाटी इलाक़े के सी व्यू बिल्डिंग से 27 अगस्त 1942 को नेशनल कांग्रेस रेडियो का प्रसारण शुरु हो गया।
इस बीच गांधी जी ने अंग्रेज़ों भारत छोडो का नारा दिया। गांधी जी समेत तमाम नेता 9 अगस्त 1942
को गिरफ़्तार कर लिए गए और प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई।

पहला प्रसारण

अपने पहले प्रसारण में उद्घोषक उषा मेहता ने कहा, “41.78 मीटर पर एक अंजान जगह से यह नेशनल कांग्रेस रेडियो है।”
रेडियो पर विज्ञापन की शुरुआत 1923 में हुई
इसके बाद इसी रेडियो स्टेशन ने गांधी जी का भारत छोडो का संदेश, मेरठ में 300 सैनिकों के मारे जाने की ख़बर, कुछ महिलाओं के साथ अंग्रेज़ों के दुराचार जैसी ख़बरों का प्रसारण किया जिसे समाचारपत्रों में सेंसर के कारण प्रकाशित नहीं किया गया था।
पहला ट्रांसमीटर 10 किलोवाट का था जिसे शीघ्र ही नरीमन प्रिंटर ने और सामान जोडकर सौ किलोवाट का कर दिया। अंग्रेज़ पुलिस की नज़र से बचने के लिए ट्रांसमीटर को तीन महीने के भीतर ही सात अलग अलग स्थानों पर ले जाया गया।
12 नवंबर 1942 को नरीमन प्रिंटर और उषा मेहता को गिरफ़्तार कर लिया गया और नेशनल कांग्रेस रेडियो की कहानी यहीं ख़त्म हो गई।
नवंबर 1941 में रेडियो जर्मनी से नेताजी सुभाष चंद्र बोस का भारतीयों के नाम संदेश भारत में रेडियो के इतिहास में एक और प्रसिद्ध दिन रहा जब नेताजी ने कहा था, “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा।”
इसके बाद 1942 में आज़ाद हिंद रेडियो की स्थापना हुई जो पहले जर्मनी से फिर सिंगापुर और रंगून से भारतीयों के लिये समाचार प्रसारित करता रहा।

आज़ादी के बाद

आज़ादी के बाद अब तक भारत में रेडियो का इतिहास सरकारी ही रहा है। आज़ादी के बाद भारत में रेडियो सरकारी नियंत्रण में रहा
सरकारी संरक्षण में रेडियो का काफी प्रसार हुआ। 1947 में आकाशवाणी के पास छह रेडियो स्टेशन थे और उसकी पहुंच 11 प्रतिशत लोगों तक ही थी। आज आकाशवाणी के पास 223 रेडियो स्टेशन हैं और उसकी पहुंच 99.1 फ़ीसदी भारतीयों तक है। टेलीविज़न के आगमन के बाद शहरों में रेडियो के श्रोता कम होते गए, पर एफएम रेडियो के आगमन के बाद अब शहरों में भी रेडियो के श्रोता बढने लगे हैं। पर गैरसरकारी रेडियो में अब भी समाचार या समसामयिक विषयों की चर्चा पर पाबंदी है।
इस बीच आम जनता को रेडियो स्टेशन चलाने देने की अनुमति के लिए सरकार पर दबाव बढता रहा है।
1995 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि रेडियो तरंगों पर सरकार का एकाधिकार नहीं है। सन 2002 में एनडीए सरकार ने शिक्षण संस्थाओं को कैंपस रेडियो स्टेशन खोलने की अनुमति दी। 16 नवम्बर 2006 को यूपीए सरकार ने स्वयंसेवी संस्थाओं को रेडियो स्टेशन खोलने की इज़ाज़त दी है।
इन रेडियो स्टेशनों में भी समाचार या समसामयिक विषयों की चर्चा पर पाबंदी है पर इसे रेडियो जैसे जन माध्यम के लोकतंत्रीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम माना जा रहा है।

रेडियो की भाषा

प्रकाशन और प्रसारण की भाषा में अंतर है. भारी भरकम लंबे शब्दों से हम बचते हैं, (जैसे, प्रकाशनार्थ, द्वंद्वात्मक, गवेषणात्मक, आनुषांगिक, अन्योन्याश्रित, प्रत्युत्पन्नमति, जाज्वल्यमान आदि. ऐसे शब्दों से भी बचने की कोशिश करते हैं जो सिर्फ़ हिंदी की पुरानी किताबों में ही मिलते हैं – जैसे अध्यवसायी, यथोचित, कतिपय, पुरातन, अधुनातन, पाणिग्रहण आदि.

एक बात और. बहुत से शब्दों या संस्थाओं के नामों के लघु रूप प्रचलित हो जाते हैं जैसे यू. एन., डब्लयू. एच. ओ. वग़ैरह. लेकिन हम ये भी याद रखते हैं कि हमारे प्रसारण को शायद कुछ लोग पहली बार सुन रहे हों और वे दुनिया की राजनीति के बारे में ज़्यादा नहीं जानते हों.

इसलिए, यह आवश्यक हो जाता है कि संक्षिप्त रूप के साथ उनके पूरे नाम का इस्तेमाल किया जाए. जहाँ संस्थाओं के नामों के हिंदी रूप प्रचलित हैं, वहाँ उन्हीं का प्रयोग करते हैं (संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन) लेकिन कुछ संगठनों के मूल अँग्रेज़ी रूप ही प्रचलित हैं जैसे एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वाच.

संगठनों-संस्थाओं के अलावा, नित्य नए समझौतों-संधियों के नाम भी आए दिन हमारी रिपोर्टों में शामिल होते रहते हैं. ऐसे नाम हैं- सीटीबीटी और आइएईए वग़ैरह. भले ही यह संक्षिप्त रूप प्रचलित हो चुके हैं मगर सुनने वाले की सहूलियत के लिए हम सीटीबीटी कहने के साथ-साथ यह भी स्पष्ट करते चलते हैं कि इसका संबंध परमाणु परीक्षण पर प्रतिबंध से है. या कहते हैं आइएईए यानी संयुक्त राष्ट्र की परमाणु ऊर्जा एजेंसी.

कई बार जल्दबाज़ी में या नए तरीक़े से न सोच पाने के कारण घिसे पिटे शब्दों, मुहावरों या वाक्यों का सहारा लेना आसान मालूम पड़ता है. लेकिन इससे रेडियो की भाषा बोझिल और बासी हो जाती है. ज्ञातव्य है, ध्यातव्य है, मद्देनज़र, उल्लेखनीय है या ग़ौरतलब है – ऐसे सभी प्रयोग बौद्धिक भाषा लिखे जाने की ग़लतफ़हमी तो पैदा कर सकते हैं पर ये ग़ैरज़रूरी हैं.

एक और शब्द है द्वारा. इसे रेडियो और अख़बार दोनों में धड़ल्ले से प्रयोग किया जाता है लेकिन ये भी भाषाई आलस्य का नमूना है. क्या आम बातचीत में कभी आप कहते हैं कि ये काम मेरे द्वारा किया गया है? या सरकार द्वारा नई नौकरियाँ देने की घोषणा की गई है? अगर द्वारा शब्द हटा दिया जाए तो बात सीधे सीधे समझ में आती है और कहने में भी आसान हैः (ये काम मैंने किया. या सरकार ने नई नौकरियाँ देने की घोषणा की है.)

रेडियो की भाषा मंज़िल नहीं, मंज़िल तक पहुँचने का रास्ता है. मंज़िल है- अपनी बात दूसरों तक पहुँचाना. इसलिए, सही मायने में रेडियो की भाषा ऐसी होनी चाहिए जो बातचीत की भाषा हो, आपसी संवाद की भाषा हो. उसमें गर्माहट हो जैसी दो दोस्तों के बीच होती है. यानी, रेडियो की भाषा को क्लासरुम की भाषा बनने से बचाना बेहद ज़रुरी है.

याद रखने की बात यह भी है कि रेडियो न अख़बार है न पत्रिका जिन्हें आप बार बार पढ़ सकें. और न ही दूसरी तरफ़ बैठा श्रोता आपका प्रसारण रिकॉर्ड करके सुनता है.

आप जो भी कहेंगे, एक ही बार कहेंगे. इसलिए जो कहें वह साफ-साफ समझ में आना चाहिए. इसलिए रेडियो के लिए लिखते समय यह ध्यान में रखना ज़रूरी है कि वाक्य छोटे-छोटे हों, सीधे हों. जटिल वाक्यों से बचें.

साथ ही इस बात का ध्यान रखिए कि भाषा आसान ज़रूर हो लेकिन ग़लत न हो

रेडियो समाचार

रेडियो समाचार की प्रकृति
रेडियो समाचार मूल तत्व को प्रभावी बनाती है। रेडियो के लिए समाचार लिखते समय सर्वप्रथम शीर्ष पंक्तिया देकर मुख्य विवरण और फिर संवाद का वर्णन किया जाता है। अल्प महत्व एवं साधारण विवरण हेतु रेडियो में समय प्रदान करने का प्रावधान नहीं है। समाचार-पत्रों में मुख्य विवरण को इंट्रों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, उसके बाद विस्तृत विवरण तथा अन्य कम महत्व को विवरण समाचार की गुणवत्ता, उसका मूल्यांकन तथा स्थान की उपलब्धता को देखते हुए दिया जाता है। एक अच्छे रेडियो संवाददाता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह समाचारों, संबंधित तथ्यों व आँकड़ों की षुद्धता, सत्यता तथा विष्वसनीयता के प्रति स्वयं आष्वस्त हो लें। उसके बाद ही समाचार को सतर्कतापूर्वक प्रेषित करना चाहिए, क्योंकि कोई भी छोटी सी भूल एक ओर जहाँ संवाददाता की बनी-बनाई प्रतिष्ठा को बट्टा लगा सकती है, वहीं दूसरी ओर इस तरह की खामियों से रेडियो प्रतिष्ठान की छवि प्रभावित होने का खतरा भी बना रहता है। यहाँ यह भी ध्यान रखना आवष्यक है कि समाचार-पत्र दिन में एक बार प्रकाषित होता हैा, परंतु रेडियो द्वारा समाचार प्रायः आधा या एक घंटे की अवधि के उपरांत क्रमषः प्रसारित होते रहते हैं। इस बसके चलते यह भी ध्यान रखना पड़ता है कि किसी घटना विषेष अथवा विषिष्ट आयोजन से संबंधित दी जानेवाली जानकारियों में त्वरित नवीनता बनी रहे। इसके लिए संवाददाताओं से भी यह अपेक्षा की जाती है कि वे किसी भी मामले की निरंतर ताजा व नवीन जानकारियों से रेडियो स्टेषन को सूचित कराते रहें।

विपरीत परिस्थितियों एवं प्रतिकूल समय में कार्य करते हुए भी एक अच्छे रेडियो संवाददाता को किसी भी तरह की गलती करने की छूट नहीं होती। तत्काल वास्तविक समाचार प्रेषित करना निरंतर अभ्यास से संभव हो पाता है। एक रेडियो संवाददाता समाचार लिखने के तुरंत बाद बुलेटिन प्रसारित होने वाले स्थान अथवा न्यूज-रूम तक उसे बिना किसी विलंब के प्रेषित करता है। वहाँ क्रम व महत्व के अनुसार समाचार को चयनित करके संबंधित बुलेटिन में षामिल किया जाता है। तथ्यों की सत्यता एवं विवरण की विष्वसनीयता को परखने के लिए अन्य माध्यमों के संवाददाता की भांति रेडियो संवाददाता को भी विभिन्न स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसका एक आसान उपाय यह भी है कि संवाददाता को जब किसी घटना की जानकारी अथवा विवरण का पता चलता है तो उसे उसकी सत्यता को परखे बिना रिपोर्ट नहीं करना चाहिए। इसको जांचने का एक तरीका यह भी है कि अन्य संबंधित स्रोतों से पूछताछ कर लिया जाए। इस सबका एक ही प्रयोजन है कि श्रोताओं को मिलने वाले समाचार पूर्णतः सत्य एवं सही हों। एक रेडियो संवाददाता को अपने समाचार में स्रोत का उल्लेख करना उपयोगी रहता है। मसलन किसी दुर्घटना के समाचार में वह लिख सकता है कि ‘आगरा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के अनुसार इस बस दुर्घटना में 10 लोगों की मृत्यु हो गई, जबकि 25 के करीब घायल हुए हैं।’ यही नहीं, तथ्यात्मक विवरण में संबंधित जिम्मेदार अधिकारी अथवा व्यक्ति के नाम का उल्लेख करना उचित रहता है। जैसे-‘भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता के अनुसार उनकी पार्टी कांग्रेस सरकार की वित्तीय नीतियों का खुलकर विरोध करेगी। रेडियो संवाददाता को ‘अपुष्ट सूत्रों के अनुसार’ अथवा ‘समझा जाता है’ या ‘ऐसा होना चाहिए’ आदि ष्षब्दों से पूर्णतः बचना चाहिए। इस तरह के का चलन प्रिंट माध्यमों में तो एक हद तक हो सकता है, परंतु रेडियो के लिए ये सर्वथा त्याज्य है। रेडियो संवाददाता को एक सूत्र पर हमेषा अमल करना चाहिए कि वह अपने समाचार में अधिकाधिक प्रामाणिक व विष्वसनीय तथ्य किस भांति प्रस्तुत कर सकता है। एक रेडियो संवाददाता को ‘डेड लाइन’ का सदैव ध्यान रखना ध्यान रखना पड़ता है। डेड लाइन से मतलब है कि समाचार भेजे जाने का अधिकतम अंतिम समय। उदाहरणार्थ, यदि एक संवाददाता को षाम को आठ बजे प्रसारित होने वाले न्यूज बुलेटिन में अपने भेजे गए समाचार को ष्षमिल करवाना है तो उसे संबंधित समाचार संपादक की कार्य-षैली व सीमाओं को देखते हुए समय से काफी पहले ही समाचार भेजने की प्रक्रिया को अंजाम देना चाहिए। डेस्क पर काम करने वाले संपादकीय सहयोगियों को समय से पूर्व मिले समाचारों में उसकी जरूरत के मुताबिक काट-छांट करने अथवा उसमें पर्याप्त संषोधन-संपादन करने का अवसर मिल जाता है। इससे समाचार की प्रामाणिकता भी पुष्ट होती है और माध्यम की विष्वसनीयता भी बनी रहती है। यही नहीं, गुणवत्ता के अनुरूप समाचार की जाँच पड़ताल के लिए भी पर्याप्त समय मिल जाता है। रेडियो संवाददाता को अंतिम परिणाम आने तक समाचार को नहीं रोकना चाहिए।

आल इंडिया रेडियो प्रसारण कोड
कोई भी प्रसारण निरपेक्ष स्वतंत्रता में काम नहीं कर सकता। उसे स्वतंत्रता के प्रयोग में कुछ सावधानियाँ बरतनी पड़ती हैं ताकि दूसरों की स्वतंत्रता का हनन न हो। आकाषवाणी प्रसारण के लिए कुछ निष्चित सीमाओं का निर्धारण किया गया है। जिसे एआईआर कोड के नाम से जाना जाता है। किसी भी प्रसारण में निम्न बातों की अनुमति नहीं दी जाती है-
1. किसी भी मित्र देश की आलोचना
2. किसी धर्म या समुदाय पर आक्षेप
3. अश्लील एवं अपमानजनक बातें
4. शांति व्यवस्था को भंग या हिंसा को प्रेरित करने वाली बातें
5. न्यायालय के लिए अनादर सूचक बातें
6. राष्ट्रपति, न्यायालय या राज्यपाल की प्रतिष्ठा पर विपरीत प्रभाव डालने वाली बातें।
7. किसी राजनीतिक दल या पार्टी पर आच्छेप
8. केन्द्र तथा राज्यों की अनुचित आलोचना
9. संविधान या जाति विषेष का अनादर

रेडियो कार्यक्रम के प्रकार
आकाषवाणी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जाता है।
1. समाचार
2. संगीत
3. उच्चरित शब्द
समाचार समाचार प्रसारण का कार्य अभी तक एकमात्र आकाषवाणी द्वारा किया जाता है। अलग-अलग अवधि के बुलेटिन नियमित अन्तराल पर 24 घण्टे लगातार प्रसारित किए जाते हैं। आकाशवाणी के प्रसारण में संगीत कार्यक्रमों का प्रमुख स्थान हो। अन्य कई नये साधनों के आने के बावजूद संगीत के लिए शहरों तथा दूर-दराज के क्षेत्रों में रेडियो के प्रसारण सुने जाते हैं। आकाशवाणी द्वारा शास्त्रीय, सुगम, लोक-संगीत भक्ति संगीत तथा देशभक्ति गीत आदि का नियमित प्रसारण किया जाता है।
उच्चरित शब्द (स्पोकन वर्ड) के अन्तर्गत वार्ताएं, परिचर्चा, साक्षात्कार, कविता, कहानी, नाटक, रूपक आदि आते हैं। आकषवाणी से महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्पर्धाओं का आँखों देखा हाल प्रसारित किया जाता है

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